Tuesday, July 30, 2019

Бунты в бразильских тюрьмах: в чем причина?

Волна насилия, прокатившаяся по тюрьмам Бразилии, привлекла внимание к состоянию ее исправительной системы, находящейся на грани коллапса.

Не менее 57 человек были убиты накануне во время бунта в одной из бразильских тюрем, 16 из них - обезглавлены.

Заключенные тюрьмы города Альтамира в штате Пара на севере Бразилии захватили часть здания и устроили беспорядки, которые длились не менее пяти часов.

В результате бунта 16 человек были обезглавлены, остальные задохнулись из-за устроенного в одном из зданий тюрьмы пожара.

Двух надзирателей взяли в заложники, но вскоре освободили, так как основной целью поджога было нападение на заключенных членов банды-конкурента.

За одну только первую неделю января этого года расстались с жизнью почти сто заключенных, и охранники по всей видимости мало что могут сделать чтобы остановить кровавые расправы.

Тюремные бунты - достаточно распространенное явление для Бразилии, которая занимает третье место в мировом рейтинге стран по количеству заключенных (ее обогнали только США и Китай, следом, на четвертом месте - Россия). В исправительных учреждениях содержится более 700 тыс. человек.

Вместе с журналисткой Бразильской службы Би-би-си Натальей Пассарино разбираемся в причинах частых тюремных бунтов в Бразилии.

В Бразилии действуют две крупнейшие преступные группы: "Первая столичная команда" (PCC), которая оперирует в Сан-Паулу, и "Красная команда" из Рио-де-Жанейро.

Итало Лима, сотрудник Федеральной лаборатории исследований жестокости в Сеаре, рассказал, что противостояние этих двух групп в тюрьмах на юге и юго-востоке Бразилии длится уже более 20 лет.

По словам Пассарино, PCC начала продвигать свою деятельность на севере и северо-востоке страны, где живет большая часть молодого населения Бразилии. Там же хотела наладить свою работу и "Красная команда".

Какое-то время они сотрудничали, предположительно, для того, чтобы наладить поставку и распространение наркотиков и оружия в Бразилии.

В 2016 году сотрудничество группировок прекратилось. В северо-восточных регионах РСС стала разделяться на множество маленьких группировок и терять свои позиции.

По словам Роберто Магно Реис Нетто исследователя в области общественной безопасности Федерального Университета Пара, таким образом в Альтамире появилась банда "Командо класс А" (CCA), члены которой и затеяли массовые беспорядки в местной тюрьме.

"Такими методами пользуются в основном мелкие банды, - говорит Пассарино. - Когда группировки недостаточно сильны и стабильны, они используют более брутальные методы насилия, чтобы таким образом запугать и показать, кто тут хозяин".

Журналистка отметила, что такие крупные игроки как PCC, у которой на сегодняшний день монополия на сбыт наркотиков, особенно в Сан-Паулу, не устраивают подобных расправ - как минимум потому, что не хотят привлекать к себе ненужное внимание.

Wednesday, July 24, 2019

中美贸易战:日美《广场协议》见证者行天丰雄反思前车之鉴

距离约定采访时间尚有一刻钟,原日本大藏省副相,有“日元大师”之称的行天丰雄(Toyoo Gyohten)推开房门健步走来,主动和BBC采访组打招呼。

已经88岁高龄的他,仍然在比邻日本银行总部欧式风格大楼的建筑里,在曾供职的国际通货研究所保有一间办公室。

大阪G20峰会结束不久,中美贸易战正酣,国际形势跌宕起伏,使这位当年日美贸易战亲历者的见解更显得具有现实意义。

“失去的20年”
日本是亚洲少有和美国有过大规模贸易战的国家,而行天丰雄则是上世纪80年代那段历史少有的健在见证者。1980年代,他曾先后担任日本大藏省国际金融局局长及副相,是《广场协议》签署现场的日方官员之一。

美国经济学家、彼得森国际经济研究所名誉所长弗雷德·伯格斯滕(Fred Bergsten)曾评价,行天丰雄断然否定了广泛存在的观点:20世纪80年代国际合作的努力,尤其是《广场协议》,导致日本出现“失去的20年”。

对于日美之争,学术界一直有一个颇具争议的描述——“失去的20年”,意指日本经济在经历上世纪80年代的繁荣后陷入90年代以来的长期困境。其因果逻辑是:在经济实力逼近美国之后,日本被逼签订广场协议,被迫升值日元,进而形成泡沫经济,泡沫破裂后即遭遇失去的20年。简单说,“罪魁祸首”是美国。

这种观点认为,1985年9月,美国凭借霸权地位打压日元,成功实现强势美元向弱势美元转向——《广场协议》拉开了日元升值的序幕,也奏响了日本经济被绞杀的悲歌。与此同时,美国对日本抡起301调查大棒,先后对日本的半导体、计算机等十余种产品进行贸易制裁。本币升值让日本出口遭受重创,而为了刺激经济,政府投放大量货币,轮番降息,造成国内流动性泛滥,使本来就存在通胀的日本经济病入膏肓。

“虽然1980年代日本遭遇了巨大的动荡,但却没有抓住机会进行必须的、对自身经济和社会进行的结构改革,”他说,“我们失去了一次完成结构改革的机会,这种(改革需求的)苗头其实在贸易战后期就开始出现了。”

这位历史见证者坚持说,1980年触发日美之争的贸易问题,原因绝不仅仅在于美国。

“日本和美国当时都没能清楚看到并解决各自的国内问题,这才是根本原因,”言下之意是,日美两国都将各自的国内问题带到了国际舞台,没有找准真正的症结和药方。

对愈演愈烈的中美贸易战,行天丰雄的着眼点首先仍是结构问题。

“我感觉中国也有结构改革的挑战,”他分析说,和当年的日美之争类似,中美两国也都各自面临着棘手的国内问题,这同样是催生贸易战的重要原因。

“但区别在于,现在的中国不是1980年代的日本,中国现在扮演的角色是美国全球霸权地位的重要挑战者。”

行天丰雄在《时运变迁》一书中阐述:美日同盟关系基于几个不可分割的核心因素,第一,日本接受美国在全球事务中的领导地位;第二,美国默许日本自由参与包括美国在内的全球市场。美国将日本视为忠诚而顺从的追随者和支持者,日本得到的好处则是,依赖美国实力赋予的稳定环境,日本防守扩大出口,石油、粮食和原材料的进口稳定性也得以保证。在同一套体系和规则下解决分歧的模式,和现在的中美之争明显不同。

道不同会产生什么结果呢?华为事件之后很多人在讨论,这个星球上有没有可能生长出两套互不依赖的系统,涵盖科技、金融系统,甚至贸易和投资系统?

“我认为这非常难”,行天丰雄的答复来得非常快。他解释说,这正是日美之争和中美之争的区别——1980年代日本和美国的分歧只体现在宏观及微观经济政策。而现在中国和美国的分歧融合了系统性、结构性矛盾和经济政策方面的分歧。

“但‘修昔底德陷阱’这种前景仍然是可以避免的”,行天丰雄话锋转向,他解释说,现在的中美两国都能充分意识到全面冲突对抗的后果,两个拥有核武器的大国之间如果发生激烈冲突甚至战争,没有一方能独自存活。“但目前的困境也在于此,在双方没有激烈对抗冲突这个过程的情况下,谁会做出妥协呢?”

“可以划出一条红线,双方达成共识,不要从上面跨过去”,行天丰雄开始用轻描淡写的口气谈起了此前几天在朝韩边界刚刚发生、震惊世界的第三次“金特会”。

“有时候甚至跨过去也没关系不是吗?特朗普跨过了那条线,双方还是保持了和平状态,并没有激起冲突。但在1951年,跨越红线的结果就是战争”,他提醒说,重要的是双方都愿意为维持和平做出妥协并遵守承诺。

行天丰雄总结说,彼此让步,达成某种形式上的妥协,将是中美之间打破僵局的一种可能。

“除了划出这条红线,我希望中美双方不要压制各自国内出现的变革苗头。”

行天丰雄阐述说,在中国方面,有很多尝试让市场扮演更重要角色的呼声和行为,同时需要赋予私营企业更多自由,放宽来自政府和国有企业的管控。而在美国方面,历史经验显示,其二战后数次出现的重大贸易赤字现象,原因都在于“个人贪婪的过度膨胀”,这种贪婪和膨胀现象甚至出现在美国普通民众当中,影响着美国的消费和经济模式。

“他们忽视了社会效益,忽视了300年前美国建国先驱们强调的公平价值观,”行天丰雄毫不留情地指出,希望美国能重新重视社会投资,改变在经济和个人领域的贪婪思维,这样才能调整涉及预算以及开展国际合作的方式,并进而改变其宏观经济内外失衡的局面。

他表示,在强调“自由、公平、保障个人权利的价值观”的前提下,这些变化有可能促成二三十年后世界上出现更加互相包容的国际体系,而不是维持现在这种对抗局面。

Tuesday, July 9, 2019

苏丹示威:来自非洲的成功抗争和香港的助喊

苏丹民众经过多个月来的示威,日前与军政府达成共识,先由军方成立过渡政府,21个月后把权力交给文人政府,之后举行大选。双方同时同意成立独立委员会,调查过去多个月苏丹示威活动期间爆发的暴力事件。

双方达成共识的消息传出后,许多当地人到街上庆祝,形容那是苏丹“历史的开端”。负责协调双方谈判的埃塞俄比亚总理和非洲联盟均表示欢迎谈判的结果。

苏丹这次政治危机从四月开始,示威者当时要求已经掌权近三十年的前苏丹总统巴希尔(Omar al-Bashir)下台,军方推翻巴希尔后,示威者转为要求军方交出权力,成立文人政府,最后军人暴力镇压,造成最少30人死亡。

有关苏丹的消息罕有地受到许多香港网友关注,表达对苏丹示威者的支持,分析也留意到两地示威活动的相似性。

走到苏丹街头的示威者大多都是年青人,他们在4月在巴希尔下台之后,连续多个星期在首都喀土穆(Khartoum)的军方总部外边静坐,要求军方把权力交给文人政府。

军方成立的过渡政府坚持它必须保有权力,才能维持秩序,但示威者仍然坚持在军方总部外静坐。苏丹军队多次驱散不果,一些隶属军方的民兵组织最终在6月3日开枪镇压。

过了数星期,他们又回到了街上游行,许多示威者自行组织数十人、甚至百多人的游行队伍,继续在喀土穆游行。军方政府有时候会拘捕一些示威领袖,但民众很快又选出一位新的领袖,继续抗争。军方情报组织多月来不断尝试渗透示威者组织,但始终无法成功阻止示威活动。

双方最终在非洲联盟的调解下达成协议,先由军方成立过渡政府管治21个月,之后把权力交给文人政府18个月,最后举行大选,让苏丹民众选出领袖。政府同时会成立独立委员会,调查近月示威活动中的暴力事件,但没有说明是否针对军方镇压示威的行为。

社交网络在苏丹的示威扮演了重要的角色,统筹示威行动的民间组织自由与改变宣言力量(Forces of the Declaration of Freedom and Change)多月来都透过社交网站宣布下一步的行动和示威计划。

例如,它在示威者和军方宣布达成共识后,宣布原定7月14日举行的公民抗命行动将改为纪念去世的示威者的悼念活动。

苏丹民兵组织6月3日开枪镇压在军方总部外静坐的示威者后,许多苏丹社交网站用户把自己的帐户图片转为蓝色,纪念一名在镇压中因为保护其他其示威者被射杀的男子。

BBC国际媒体观察部(BBC Monitoring)的报道指出,苏丹军政府在镇压后下令关闭大部份的网络服务,包括手机讯号,防止当地人把有关暴力镇压的消息传到国外,但示威者与政府达成协议后,军方宣布将在未来数天恢复网络服务。

谷歌(Google)的资料显示,苏丹民兵组织6月3日向示威者开枪后,香港网民搜寻有关苏丹消息的次数增多了数倍,许多香港媒体都有跟进报道苏丹的情况。

许多香港的网友在讨论香港最新的情况时,不忘转载许多关于苏丹示威活动,形容两地当权者的面目不同,但“独裁本质却是一样”。

荷兰人权研究所(Netherlands Institute of Human Rights)主管比斯(Antoine Buyse)6月18 日在英国《卫报》撰文指出,香港和苏丹的示威活动有许多相似的地方,尤其是两地的示威者很快从过去失败的经验学习,例如苏丹示威者知道他们不可以让示威活动像埃及一样,推翻政府后却让军事强人穆巴拉克(Hosni Mubarak)掌权,因此坚持军政府尽快把权力移交给文人政府。香港的示威者也学会必须不断发动示威,避免示威像2014年“占领中环”运动后期般失去动力。

Wednesday, July 3, 2019

हरियाणा की तीन बहनें, तीनों राज्य की मुख्य सचिव

आईएएस की ट्रेनिंग के दौरान जब केशनी आनंद अरोड़ा को डिप्टी कमिश्नर के काम काज के बारे में बताया जा रहा था तब एक वरिष्ठ अधिकारी ने उन पर तंज़ करते हुए कहा, आप इसपर इतना ध्यान क्यों दे रही हैं. कोई आपको डिप्टी कमिश्नर की पोस्ट नहीं देने जा रहा है.

इस वाक़ये का ज़िक्र करते हुए केशनी कहती हैं कि उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा था, आप चिंता न करें, मैं एक दिन डिप्टी कमिश्नर बनूंगी. वो कहती हैं कि लोग तो इस बात पर शर्त लगाते थे कि किसी महिला को डिप्टी कमिश्नर या दूसरे अहम पद नहीं मिल सकते हैं.

हरियाणा के अलग राज्य बनने के 25 साल बाद, 1983 बैच की आईएएस अधिकारी केशनी राज्य की पहली महिला डिप्टी कमिश्नर बनीं. और इसी हफ़्ते वो राज्य की मुख्य सचिव बनीं. लेकिन ये पल उनके और उनके परिवार के लिए बहुत ही ख़ास था क्योंकि ये अपने परिवार की तीसरी बहन थीं जो कि किसी राज्य की मुख्य सचिव बनी थीं.

उनकी दो बड़ी बहनें मीनाक्षी आनंद चौधरी (1969 बैच आईएएस) और उर्वशी गुलाटी ( 1975 बैच आईएएस) उनसे पहले राज्य की मुख्य सचिव रह चुकी हैं.

अपनी तीनीं बहनों की इस कामयाबी का पूरा श्रेय वो अपने माता-पिता और ख़ासकर पिता प्रोफ़ेसर जीसी आनंद को देती हैं.

वो कहती हैं, ''ये उनका सपना था जो आज पूरा हो गया. उन्होंने घर में ऐसा माहौल बनाया था जिससे हमें अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान देने का मौक़ा मिला.''

वो कहते हैं कि उन दिनों हालात उतने आसान नहीं थे. जब उनकी बड़ी बहन मीनाक्षी ने 10वीं क्लास पास की तो उनके रिश्तेदारों ने उनके माता-पिता पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि अब वे उनकी शादी कर दें. लेकिन उनकी मां ने कहा कि बुरे समय में आपकी पढ़ाई- लिखाई ही काम आती है.

केशनी का परिवार रावलपिंडी (पाकिस्तान) से बंटवारे के समय भारत आ गया था.

एक ऐसा राज्य जो लिंग अनुपात के लिए बहुत बदनाम है, वहां एक ही परिवार की तीन सगी बहनों का आईएएस बनना और फिर बाद में तीनों का मुख्य सचिव बनना बहुत बड़ी बात है.

हालांकि पिछले कुछ सालों में लिंग अनुपात थोड़ा बेहतर हुआ है और राज्य सरकार ने ''बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ'' जैसा जागरुकता अभियान भी चलाया है, लेकिन उन सबके बावजूद लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में बहुत कम है.

केशनी कहती हैं कि लोग महिलाओं को अहम पदों पर बैठते हुए देखने के आदी नहीं हैं. केशनी कहती हैं, "जब मैं किसी इलाक़े का दौरा करने जाती थी तो लोगों को लगता था कि डिप्टी कमिश्नर साहब की पत्नी आईं हैं. मुझे याद है लोग गांव के पटवारी से पूछते थे कि क्या डीसी साहब ने अपनी बेटी को काम पर लगा रखा है."

केशनी कहती हैं कि नौकरशाही में महिलाओं के लिए चीज़ें कभी भी आसान नहीं थीं. अपनी पहली पोस्टिंग को याद करते हुए केशनी कहती हैं, ''जब पहली बार मुझे डिप्टी कमिश्नर बनाया गया तो मुझसे कहा गया कि अगर मैं बढ़िया प्रदर्शन नहीं करूंगी तो फिर किसी और महिला अफ़सर को ये पोस्ट नहीं मिलेगी. अगले साल जब ट्रांसफ़र लिस्ट निकली तो मुझे ये देखकर ख़ुशी हुई कि उनमें दो महिलाओं को डिप्टी कमिश्नर बनाया गया था.''

केशनी कहती हैं कि महिलाओं को हमेशा अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ता है. उनके अनुसार महिलाओं को हमेशा अपने पुरुष अधिकारियों को कहना पड़ता है कि वो उन्हें एक अधिकारी की तरह समझें ना कि महिला और पुरुष की तरह.

वो कहती हैं कि हालात बेहतर ज़रूर हुए हैं लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है. उनका कहना है कि लोगों की मानसिकता बदलनी चाहिए. उनके अनुसार अगर महिलाओं को सही माहौल मिले तो वो कुछ भी हासिल कर सकती हैं.