Thursday, December 6, 2018

सबरीमाला का फायदा ले पाएगी भाजपा, इसकी कम ही संभावना

केरल में भाजपा सबरीमाला मुद्दे को भुनाने का प्रयास कर रही है, लेकिन 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में इससे लाभ ले पाना उसके लिए कठिन है। यह कहना है राज्य के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक बीआरपी भास्कर का। वे कहते हैं राज्य में सत्ताधारी लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट पर इसका असर होगा, लेकिन बहुत कम। इसलिए कि 2014 में मोदी लहर के दौरान वे सात संसदीय क्षेत्र, जहां हिन्दू आबादी 60 फीसदी से ज्यादा थी, वहां भी लेफ्ट के अलावा कांग्रेस ही मजबूत थी।

भास्कर कहते हैं राज्य में 54.7 फीसदी आबादी हिन्दू है और मुस्लिम महज 26.5 फीसदी व ईसाई सिर्फ 18.3 फीसदी ही हैं। एेसे में पार्टी को उम्मीद है कि सबरीमाला मुद्दा यहां हिन्दुओं का ध्रुवीकरण और उसके वोट बैंक में इजाफा कर सकता है। यही वजह है कि पार्टी की केरल इकाई ने सबरीमाला आंदोलन को तेज करने के लिए तैयारी शुरू कर दी है।

केरल भाजपा के बड़े नेता बीते सोमवार से तिरुवनंतपुरम में सचिवालय के सामने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू भी कर चुके हैं। इधर, कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा धर्मिक भावनाएं भड़काने की कोशिश कर रही है। पत्तनमतिट्टा सीट से सांसद एंटो एंटनी (कांग्रेस) कहते हैं- अगर भाजपा को सबरीमाला के श्रद्धालुओं की इतनी ही चिंता है तो वह संसद में इस पर अध्यादेश क्यों नहीं लाती। हालांकि, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पीएस श्रीधरन पिल्लई कहते हैं कि उनकी पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए विकास कार्यों को जनता के बीच लेकर जाएगी। सबरीमाला नहीं, हम जनता को पिनाराई विजयन सरकार की नाकामियां गिनाएंगे।

इधर, सत्ताधारी सीपीएम के सांसद सीएन जयदेवन का कहना है कि जो भी पार्टियां सबरीमाला मुद्दे के भरोसे हैं, वे बुरी तरह नुकसान उठाने वाली हैं। कांग्रेस को ज्यादा नुकसान होगा। क्योंकि उसने भी कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाकर भक्तों से सहानुभूति जताने का दिखावा किया। वहीं सत्ता में बैठी हमारी पार्टी ने कोर्ट के आदेश का पालन किया है। हमें इसका फायदा मिलेगा।

वैसे मलयाली लेखक और सामाजिक विश्लेषक पॉल जकारिया कहते हैं कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के फैसले से नाराज सिर्फ नायर समुदाय के लोग थे। राज्य में जिनकी संख्या कम ही है। मगर मीडिया ने इसे पूरे हिन्दू समुदाय का मुद्दा बना दिया।