Monday, January 28, 2019

Realme C1-2019 भारत में लॉन्च, शुरुआती कीमत 7,499 रुपये

Realme ने भारतीय बाजार में अपने पॉपुलर एंट्री लेवल स्मार्टफोन Realme C1 के दो नए वेरिएंट्स को लॉन्च कर दिया है. इसकी लॉन्चिंग एक्सक्लूसिव तौर पर फ्लिपकार्ट पर की गई. इन नए वेरिएंट्स को ज्यादा रैम और स्टोरेज के साथ लॉन्च किया गया है. ग्राहकों के लिए ये वेरिएंट्स फ्लिपकार्ट और रियमली की वेबसाइट पर उपलब्ध होंगे. याद के तौर पर बता दें Realme C1 को पिछले साल 2GB रैम और 16GB स्टोरेज के साथ उतारा गया था. अब कंपनी ने Realme C1 (2019) को 2GB + 32GB और 3GB + 32GB वाले दो नए वेरिएंट में उतारा है.

कीमत की बात करें तो 2GB + 32GB वेरिएंट की कीमत भारत में 7,499 रुपये और 3GB + 32GB मॉडल की कीमत 8,499 रुपये रखी गई है. गौर करने वाली बात ये है कि 2GB + 32GB वेरिएंट की कीमत वही जिस कीमत में कंपनी फिलहाल 2GB + 16GB को बेचती आ रही है. पिछले साल 2GB + 16GB वेरिएंट को कुछ समय के लिए 6,999 रुपये में उतारा गया था. बाद में इसकी कीमत बढ़ाकर 7,999 रुपये कर दी गई है. बाद में इसे 7,499 रुपये में भारत में सेल किया जा रहा था. फिलहाल ये साफ नहीं है कि कंपनी इस 2GB रैम वेरिएंट की कीमत घटाएगी या इसे बंद कर देगी.

इन दोनों वेरिएंट्स की पहली सेल भारत में 5 फरवरी दोपहर 12 बजे से शुरू होगी. कंपनी ने ये भी जानकारी दी है कि नए Realme C1 वेरिएंट्स जल्द ही ऑफलाइन रिटेलर्स पर भी उपलब्ध कराए जाएंगे.

Realme C1 के स्पेसिफिकेशन्स

Realme C1 को जब पिछले साल लॉन्च किया गया था. तब अपने दमदार स्पेसिफिकेशन्स की वजह से इस स्मार्टफोन ने बजट सेगमेंट में एक अलग पहचान बना ली थी. इस स्मार्टफोन में iPhone X की तरह नॉच डिजाइन के साथ 6.2-इंच डिस्प्ले मिलता है. इसमें 2GB और 3GB रैम के साथ ऑक्टा-कोर स्नैपड्रैगन 450 प्रोसेसर मौजूद है.

इस स्मार्टफोन की बैटरी की बात करें तो इसमें दमदार 4,230mAh की बैटरी मिलती है जो कंपनी के दावे के मुताबिक सिंगल चार्ज में करीब करीब दो दिन तक चलती है. ये स्मार्टफोन एंड्रॉयड 8.1 ओरियो बेस्ड ColorOS 5.1 के साथ आता है. फोटोग्राफी के सेक्शन की बात करें तो इस स्मार्टफोन के रियर में डुअल कैमरा सेटअप मिलता है. यहां 13 मेगापिक्सल और 2 मेगापिक्सल के दो कैमरे मिलते हैं. वहीं इसका फ्रंट कैमरा 5 मेगापिक्सल का है.

महिंद्रा अपनी नई XUV300 को जल्द भारतीय बाजार में उतारने जा रही है. इसकी लॉन्चिंग से पहले कंपनी लोगों को आकर्षित करने के लिए कई प्रोमो वीडियोज डाल रही है. अब कंपनी ने एक अपने सोशल मीडिया हैंडल पर एक वीडियो पोस्ट किया है जिसमें इस अपकमिंग SUV के सेफ्टी फीचर्स को विस्तार से बताया गया है. गौरतलब है कि Mahindra की Marazzo MPV को हाल में NCAP क्रैश टेस्ट में 4 स्टार रेटिंग मिली थी. ऐसे में महिंद्रा की ओर से जल्द लॉन्च होने वाली इस SUV के लिए भी लोगों को बेहतर सेफ्टी फीचर्स की उम्मीद है.

उम्मीद है कि नई XUV300 अपने सेगमेंट में बेहतर प्रदर्शन करेगी और कंपनी ने इसके टॉप वेरिएंट में कुछ फर्स्ट-इन-क्लास फीचर्स दिए हैं. इस अपकमिंग SUV में दिए गए सेफ्टी फीचर्स की बात करें तो इसमें 7-एयरबैग्स दिए गए हैं, ऐसे में ये कार Maruti Suzuki Vitara Brezza से मुकाबला करेगी. साथ ही यहां सारे कॉर्नर्स में डिस्क ब्रेक्स और रियर पार्किंग सेंसर के साथ फर्स्ट-इन-सेगमेंट फ्रंट पार्किंग सेंसर भी मिलेगा.

इस SUV में दिए जा रहे दूसरे सेफ्टी फीचर्स की बात करें तो यहां ISOFIX चाइल्ड सीट माउंट्स, EBD (इलेक्ट्रॉनिक ब्रेक-फोर्स डिस्ट्रीब्यूशन) के साथ ABS (एंटी-लॉक ब्रेकिंग सिस्टम), हिल होल्ड असिस्ट के साथ ESP (इलेक्ट्रॉनिक स्टेबिलिटी प्रोग्राम) और सारे वेरिएंट्स में स्टैडर्ड तौर पर थ्री-पॉइंटेड सीट-बेल्ट ग्राहकों को मिलेंगे.

नई Mahindra XUV300, SsangYong Tivoli पर बेस्ड है और कंपनी का दावा है कि SUV के इंडियन वर्जन में प्रीमिमय और हाई टेक फीचर्स मिलेंगे. शुरुआत में ये कार डीजल इंजन के साथ आएगी बाद में इसे पेट्रोल वेरिएंट में भी उतारा जाएगा. हालांकि कंपनी ने इसके मैकेनिकल स्पेसिफिकेशन्स के बारे में ज्यादा जानकारी साझा नहीं की है. हालांकि ये तय है कि कंपनी लॉन्च के वक्त इसे AMT गियरबॉक्स के साथ नहीं उतारेगी.

Friday, January 18, 2019

ममता की रैली में विपक्ष का शक्ति प्रदर्शन कल, राहुल ने कहा- हम सब एक हैं

प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लोकसभा चुनाव से पहले अपनी ताकत दिखाने के लिए 19 जनवरी को एक रैली करेंगी। देशभर के विपक्षी दलों के नेताओं को इसमें आने का न्योता दिया गया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पत्र लिखकर ममता का समर्थन किया।

विपक्ष की एकता दिखाने के लिए समर्थन- राहुल
राहुल ने लिखा, ''पूरा विपक्ष एक है। मैं ममता दी को विपक्ष की एकता दिखाने के लिए समर्थन देता हूं। आशा है कि हम सब एकजुट भारत का शक्तिशाली संदेश देंगे।'' राहुल ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा, ''पूरा विपक्ष एकजुट है, हमारा मानना है कि सच्चा राष्ट्रवाद और विकास ही लोकतंत्र, समाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता के पिलर को बचा सकता है, जिसे भाजपा और मोदी बर्बाद करने पर तुले हैं।''

राहुल-सोनिया और मायावती रैली में नहीं लेंगे हिस्सा
राहुल गांधी और सोनिया गांधी ममता की इस रैली में शामिल नहीं होंगे। हालांकि, कांग्रेस की ओर से लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे इसमें शामिल हो सकते हैं। बसपा प्रमुख मायावती भी इस रैली में हिस्सा नहीं लेंगी। उनकी जगह पार्टी नेता और राज्यसभा सांसद सतीश मिश्रा शामिल होंगे।

20 से ज्यादा दलों के नेता हो सकते हैं शामिल
कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में भाजपा के खिलाफ होने वाली इस रैली में 20 के दलों के नेता शामिल हो सकते हैं। ममता बनर्जी ने इस रैली को भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव में 'मौत की दस्तक' बता चुकी हैं।

प. बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस का मानना है कि यह रैली ममता को एक ऐसे नेता के तौर पर पेश करने के लिए है, जो लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा के खिलाफ सभी दलों के नेताओं को एकसाथ लाएगी।

ममता ने गुरुवार को कहा था कि लोकसभा चुनावों में क्षेत्रीय पार्टियों की भूमिका काफी अहम होगी। यह 'एकजुट भारत रैली' भाजपा के कुशासन के खिलाफ है। लोकसभा चुनाव में भाजपा 125 सीटों से आगे नहीं बढ़ पाएगी। क्षेत्रीय पार्टियों का प्रदर्शन भाजपा से बेहतर होगा। लोकसभा चुनाव के बाद ये पार्टियां निर्णायक साबित होंगी।

इन्हें मिला रैली में आने का न्योता
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी, आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, सपा प्रमुख अखिलेश यादव, राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव, द्रमुक नेता एमके स्टालिन, भाजपा सांसद शत्रुघ्‍न सिन्हा को रैली में आने का निमंत्रण भेजा गया है।

इसके अलावा बसपा महासचिव सतीश मिश्रा, राकांपा प्रमुख शरद पवार, राष्ट्रीय लोकदल के अजीत सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी, झारखंड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरांडी भी इस रैली में शामिल हो सकते हैं। भाजपा से इस्तीफा देने वाले अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंंत्री गेगांग अपांग भी इसमें हिस्सा ले सकते हैं।

Wednesday, January 9, 2019

पाकिस्तानी हिंदू 'बच्चे' का ऊंट की पीठ से अमरीका तक का सफ़र

उनकी उम्र महज़ पांच साल थी जब पहली बार रोज़गार का बोझ उनके कंधों पर आ गया था. उन्हें संयुक्त अरब अमीरात ले जाया गया जहां वह ऊंटों की दौड़ में सवार का काम करते थे.

सरपट दौड़ते ऊंट की पीठ पर सवार उस पांच साल के बच्चे को इसके बदले में केवल दस हज़ार रुपये मिलते थे. वह इस पैसे को घरवालों को भेज देते थे.

सन 1990 में शायद ये काफ़ी रक़म होगी, लेकिन इसे कमाने में उनकी जान जा सकती थी. उस समय उनके सामने उनके दो दोस्त ऊंट से गिरकर मर चुके थे. हादसा उनके साथ भी हुआ लेकिन वह बच गए.

इसी तरह से पांच साल बीत गए. सन 1995 में संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ़ ने सैकड़ों ऐसे बच्चों को आज़ाद करवाया जो ऊंट की दौड़ में सवार के रूप में इस्तेमाल किए जाते थे.

जीवित बच जाने वाले ख़ुशनसीबों में वह भी शामिल थे. वह वापस पाकिस्तान के रहीमयार ख़ान में अपने घर में लौट आए और फिर यहीं से पढ़ाई का सिलसिला शुरू हुआ. आर्थिक स्थिति अब ऐसी नहीं थी कि घरवाले उनका ख़र्च उठा पाते. इसलिए उन्होंने ख़ुद छोटे-मोटे काम शुरू कर दिए.

गटर साफ़ करने वालों के साथ काम करने से लेकर रिक्शा चलाने तक उन्होंने हर तरह का काम किया और अपनी पढ़ाई के ख़र्चे ख़ुद उठाए.

22 साल की जद्दोजहद के बाद सन 2017 में ये नौजवान अमरीकी सरकार की ओर से दिए जाने वाली फ़ेलोशिप पर अमरीकन यूनिवर्सिटी के वॉशिंगटन कॉलेज ऑफ़ लॉ पहुंच गया.

क़ानून और मानवाधिकर की पढ़ाई करने के बाद बीते साल वह पाकिस्तान वापस लौट आए और अब ऐसे बच्चों की शिक्षा के लिए काम कर रहे हैं जैसे हालात वह ख़ुद देख चुके हैं.

पाकिस्तान के अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय से संबंध रखने वाले इस युवा का नाम रमेश जयपाल है, और ये उन्हीं की कहानी है.

पंजाब प्रांत के शहर रहीमयार ख़ान से चंद किलोमीटर दूर लियाक़तपुर के एक गांव में हाल में उनकी कोशिशों से हिंदू समुदाय के बच्चों के लिए एक टेंट में छोटा सा स्कूल स्थापित किया गया है.

चोलिस्तान की रेत पर खुली हवा में बने इस स्कूल में बैठे रमेश जयपाल ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि उन्हें शिक्षा हासिल करने की लत अरब के रेगिस्तानों में लगी जब वह एक सवार के तौर पर काम करते थे.

उन्होंने कहा, "मेरी पढ़ाई के दौरान कई रुकावटें आईं. मगर मैंने इसे टुकड़ों में ही सही लेकिन जारी रखा."

जान हथेली पर लेकर ऊंट की सवारी
सन 1980 और 1990 के दशक में दस साल से छोटी उम्र के बच्चों को ऊंटों की दौड़े में इस्तेमाल किया जाता था.

अरब देशों में होने वाली इन पारंपरिक दौड़ों में ऊंट के ऊपर पर सवार बच्चा जितना ज़्यादा रोता था ऊंट उतना तेज़ दौड़ता था.

यही वजह थी कि इस पर सवार होने वाले बच्चों का सोच-समझकर चुनाव होता था. ऊंटों के अमीर मालिकों को ऐसे बच्चे दुनिया के पिछड़े देशों से बड़ी आसानी से मिल जाते थे. पाकिस्तान के बहावलपुर, रहीमयार ख़ान, ख़ानीवाल और दक्षिणी पंजाब के कई इलाक़े भी इन जगहों में शामिल थे.

रमेश जयपाल अपने एक बेरोज़गार मामा के साथ संयुक्त अरब अमीरात के शहर अल-ऐन पहुंचे. उन लोगों को वहां आसानी से नौकरी दे दी जाती थी जो अपने साथ 10 साल से छोटी उम्र का बच्चा ले आते थे.

उनके ख़ानदान की भी आर्थिक स्थित ख़राब थी. रमेश कहते हैं, "मगर मेरी मां को ये उम्मीद थी कि भाई के साथ जा रहा है तो उसका ख़याल रखेगा. उन्हें मालूम होता कि वहां कैसे हालात हैं तो शायद कभी न भेजतीं."

"रेगिस्तान के बीचों-बीच हम टेंटों या टीन के घरों में रहते थे. दिन में तापमान 41 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तक चला जाता था और सर्दियों में रातें बेहद ठंडी होती थीं."

सर्दियों में सुबह चार बजे दौड़ की शुरुआत होती थी. बाक़ी दिनों में उन्हें ऊंटों की देखभाल करनी होती थी. इस दौरान उन्हें चारा डालना, सफ़ाई करना और फिर मालिश करनी होती थी.

वह कहते हैं, "दौड़ के दौरान एक हादसे में मेरे सिर में चोट आई, दस टांके लगे. आज भी उसकी वजह से सिर में दर्द उठता है."

रमेश जयपाल ने बताया कि कई बार वापस पाकिस्तान जाने की उनकी कोशिशें नाकाम हुईं क्योंकि उनका पासपोर्ट उनके मालिक के पास जमा था.

पांच साल बाद सन 1995 में यूनिसेफ़ से ऊंटों की दौड़ों में बच्चों के इस्तेमाल पर पाबंदी लागू कर दी गई. सैकड़ों बच्चों को उस समय आज़ादी मिली और रमेश उनमें से एक थे

Thursday, January 3, 2019

बुजुर्गों को सरकार की दुत्कार? 11 साल से महज 200 रुपये महीने पेंशन

हर व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन भारत के बुजुर्ग राम भरोसे हैं. इनकी संख्या भी बढ़ती जा रही है पर ऐसे बुजुर्ग मुफलिसी में जीवन गुजारने को मजबूर हैं जो सरकारी नौकरी में नहीं थे या जिन्हें पेंशन नहीं मिलती. एक बुजुर्ग को केंद्र सरकार 200 रुपये प्रति महीने पेंशन देती है. 11 साल से इस राशि में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है. लेकिन 5 राज्य सरकारों ने अपनी तरफ से धनराशि जोड़कर इसे 2000 तक कर दिया है.

बड़ा सवाल ये है कि क्या बुजुर्गों को सरकारी स्कीम की मदद मिल रही है, और अगर मिल रही है तो उनकी सभी जरूरतें इस मदद से पूरी हो रही हैं? क्योंकि आंकड़े सोचने पर मजबूर करते हैं. साल 2011 के जनगणना के अनुसार देश में 10.38 करोड़ वरिष्ठ नागरिक हैं. पिछले 50 वर्षों में भारत की जनसंख्‍या लगभग 3 गुनी हो गई है, लेकिन बुजुर्गों की संख्‍या 4 गुना से भी ज्‍यादा हो गई है.

20 साल में बुजुर्गों की संख्या दुगुनी

दरअसल पिछले एक दशक में भारत में वयोवृद्ध लोगों की आबादी 39.3% की दर से बढ़ी है. आगे आने वाले दशकों में इसके 45-50 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्‍मीद है. यही नहीं, दुनिया के अधिकतर देशों में बुजुर्गों की संख्‍या दोगुनी होने में 100 से ज्‍यादा वर्ष लग गए, लेकिन भारत में इनकी आबादी केवल 20 वर्षों में ही दोगुनी हो गई.

आंकड़ों के मुताबिक भारत करीब 94% श्रमिक गैर-संगठित क्षेत्र में काम करते हैं, इनमें अधिकतर को पर्याप्‍त सामाजिक सुरक्षा उपलब्‍ध नहीं है. विभिन्‍न मंत्रालयों और अन्‍य सरकारी एजेंसियों के कई सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम हैं. लेकिन सामाजिक सुरक्षा के राज्‍य-स्‍तरीय कार्यक्रमों से न जुड़े होने के कारण गैर-संगठित क्षेत्र के श्रमिकों और उनके आश्रितों को बीमारी, अधिक उम्र, दुर्घटनाओं या मृत्‍यु के कारण बेहद गरीबी का सामना करना पड़ता है.

वाह रे सरकार....

अब आपको हकीकत से वाकिफ कराते हैं, वैसे तो केंद्र सरकार 60 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों को आर्थिक मदद के तौर (वृद्धा पेंशन) देती है, इस योजना का पूरा नाम (इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन) है. लेकिन कितनी रकम मिलती है जब ये आप जानेंगे तो हैरान रह जाएंगे? केंद्र सरकार आज भी मात्र 200 रुपये महीने के हिसाब से बुजुर्गों को पेंशन का भुगतान करती है.

दरअसल, साल 2007 में 60-79 वर्ष के आयु वर्ग के लिए इस योजना के अंतर्गत मासिक पेंशन की राशि मात्र 200 रुपये रखी गई थी. उसी समय यह राशि बहुत कम मानी गई थी, जबकि 80 वर्ष से अधिक के आयु वर्ग के लिए पेंशन 500 रुपये रखी गई थी. लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि उसके बाद 11 साल बीत गए और केंद्र सरकार ने इसमें कोई बढ़ोतरी नहीं की. महंगाई के हिसाब से देखें तो साल 2007 में तय किए गए 200 रुपये की कीमत आज मात्र 92 रुपये ही रह गई है.

इन राज्यों की सराहनीय कोशिश

केंद्र के द्वारा वृद्धा पेंशन के तौर पर मिलने वाली ये राशि राज्यों सरकारों के द्वारा वितरित की जाती है. और इस पेंशन राशि में अधिकांश राज्य सरकारें अपनी ओर से धनराशि जोड़ती हैं, जहां वे अधिक धनराशि जोड़ती हैं, वहां वृद्ध नागरिकों को अपेक्षाकृत अधिक पेंशन मिल जाती है. गोवा, दिल्ली, केरल और हरियाणा में राज्य सरकारों की मदद से 2000 रुपये के आसपास पेंशन मिल जाती है.

सुप्रीम कोर्ट ने ली क्लास

दूसरी ओर कुछ राज्य ऐसे हैं, जहां सरकारें अपनी ओर से बहुत कम धनराशि जोड़ती हैं और वहां के वरिष्ठ नागरिकों को अभी तक 500 रुपये से भी कम की पेंशन मिलती है. ऐसे राज्य बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और मणिपुर हैं. वो तो भला हो सुप्रीम कोर्ट का, जिसने पिछले दिनों केंद्र सरकार से इस मामले पर गंभीरता से विचार का आदेश दिया. मौजूदा वक्त में इस राशि को 3000 रुपये तक करने की मांग की गई है. इसके अलावा कुछ और योजनाएं वरिष्ठ नागरिकों के लिए हैं, जो इस प्रकार हैं.

वय वंदना योजना

बुजुर्गों पर विशेष ध्यान के लिए मोदी सरकार ने इस योजना की शुरुआत की. हाल में सरकार ने प्रधानमंत्री वय वंदना योजना (पीएमवीवीवाई PMVVY) के तहत निवेश सीमा को दोगुना कर 15 लाख रुपये करने को मंजूरी दी. इससे वरिष्ठ नागरिकों का सामाजिक सुरक्षा कवर बढ़ सकेगा. साथ ही इस योजना में निवेश सीमा दो साल बढ़ाकर 31 मार्च, 2020 कर दिया गया है. पीएमवीवीवाई (PMVVY) 60 साल और उससे अधिक उम्र के नागरिकों के लिए है. इससे यह साफ है कि इस योजना में अगर कोई 15 लाख रुपये का निवेश करता है तब उसे योजना जारी रहने तक 10000 रुपये हर महीने पेंशन मिलती रहेगी.

क्या है पीएमवीवीवाई (PMVVY)?

पीएमवीवीवाई 60 वर्ष और उससे ऊपर के वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक पेंशन योजना है. इस योजना के तहत वरिष्ठ नागरिकों को मासिक पेंशन विकल्प चुनने पर 10 वर्षों के लिए 8 फीसदी के गारंटी के साथ रिटर्न की व्यवस्था की गई है. अगर इसमें वार्षिक पेंशन विकल्प चुना जाता है तब 10 वर्षों के लिए 8.3% की गारंटीशुदा वापसी होगी. सरकार इस योजना को एलआईसी (LIC) के साथ मिलकर लाई है.