Wednesday, July 3, 2019

हरियाणा की तीन बहनें, तीनों राज्य की मुख्य सचिव

आईएएस की ट्रेनिंग के दौरान जब केशनी आनंद अरोड़ा को डिप्टी कमिश्नर के काम काज के बारे में बताया जा रहा था तब एक वरिष्ठ अधिकारी ने उन पर तंज़ करते हुए कहा, आप इसपर इतना ध्यान क्यों दे रही हैं. कोई आपको डिप्टी कमिश्नर की पोस्ट नहीं देने जा रहा है.

इस वाक़ये का ज़िक्र करते हुए केशनी कहती हैं कि उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा था, आप चिंता न करें, मैं एक दिन डिप्टी कमिश्नर बनूंगी. वो कहती हैं कि लोग तो इस बात पर शर्त लगाते थे कि किसी महिला को डिप्टी कमिश्नर या दूसरे अहम पद नहीं मिल सकते हैं.

हरियाणा के अलग राज्य बनने के 25 साल बाद, 1983 बैच की आईएएस अधिकारी केशनी राज्य की पहली महिला डिप्टी कमिश्नर बनीं. और इसी हफ़्ते वो राज्य की मुख्य सचिव बनीं. लेकिन ये पल उनके और उनके परिवार के लिए बहुत ही ख़ास था क्योंकि ये अपने परिवार की तीसरी बहन थीं जो कि किसी राज्य की मुख्य सचिव बनी थीं.

उनकी दो बड़ी बहनें मीनाक्षी आनंद चौधरी (1969 बैच आईएएस) और उर्वशी गुलाटी ( 1975 बैच आईएएस) उनसे पहले राज्य की मुख्य सचिव रह चुकी हैं.

अपनी तीनीं बहनों की इस कामयाबी का पूरा श्रेय वो अपने माता-पिता और ख़ासकर पिता प्रोफ़ेसर जीसी आनंद को देती हैं.

वो कहती हैं, ''ये उनका सपना था जो आज पूरा हो गया. उन्होंने घर में ऐसा माहौल बनाया था जिससे हमें अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान देने का मौक़ा मिला.''

वो कहते हैं कि उन दिनों हालात उतने आसान नहीं थे. जब उनकी बड़ी बहन मीनाक्षी ने 10वीं क्लास पास की तो उनके रिश्तेदारों ने उनके माता-पिता पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि अब वे उनकी शादी कर दें. लेकिन उनकी मां ने कहा कि बुरे समय में आपकी पढ़ाई- लिखाई ही काम आती है.

केशनी का परिवार रावलपिंडी (पाकिस्तान) से बंटवारे के समय भारत आ गया था.

एक ऐसा राज्य जो लिंग अनुपात के लिए बहुत बदनाम है, वहां एक ही परिवार की तीन सगी बहनों का आईएएस बनना और फिर बाद में तीनों का मुख्य सचिव बनना बहुत बड़ी बात है.

हालांकि पिछले कुछ सालों में लिंग अनुपात थोड़ा बेहतर हुआ है और राज्य सरकार ने ''बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ'' जैसा जागरुकता अभियान भी चलाया है, लेकिन उन सबके बावजूद लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में बहुत कम है.

केशनी कहती हैं कि लोग महिलाओं को अहम पदों पर बैठते हुए देखने के आदी नहीं हैं. केशनी कहती हैं, "जब मैं किसी इलाक़े का दौरा करने जाती थी तो लोगों को लगता था कि डिप्टी कमिश्नर साहब की पत्नी आईं हैं. मुझे याद है लोग गांव के पटवारी से पूछते थे कि क्या डीसी साहब ने अपनी बेटी को काम पर लगा रखा है."

केशनी कहती हैं कि नौकरशाही में महिलाओं के लिए चीज़ें कभी भी आसान नहीं थीं. अपनी पहली पोस्टिंग को याद करते हुए केशनी कहती हैं, ''जब पहली बार मुझे डिप्टी कमिश्नर बनाया गया तो मुझसे कहा गया कि अगर मैं बढ़िया प्रदर्शन नहीं करूंगी तो फिर किसी और महिला अफ़सर को ये पोस्ट नहीं मिलेगी. अगले साल जब ट्रांसफ़र लिस्ट निकली तो मुझे ये देखकर ख़ुशी हुई कि उनमें दो महिलाओं को डिप्टी कमिश्नर बनाया गया था.''

केशनी कहती हैं कि महिलाओं को हमेशा अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ता है. उनके अनुसार महिलाओं को हमेशा अपने पुरुष अधिकारियों को कहना पड़ता है कि वो उन्हें एक अधिकारी की तरह समझें ना कि महिला और पुरुष की तरह.

वो कहती हैं कि हालात बेहतर ज़रूर हुए हैं लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है. उनका कहना है कि लोगों की मानसिकता बदलनी चाहिए. उनके अनुसार अगर महिलाओं को सही माहौल मिले तो वो कुछ भी हासिल कर सकती हैं.

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